महाविद्यालय एक परिचय,
शिक्षा प्रेमी नरहन रेलवे स्टेषन के श्री रामजी मिश्र (सहायक स्टेषन मास्टर) ने इस इलाके के गणमान्य लोगों एवं बाबू जनार्दन प्रसाद सिंह के साथ नरहन स्टेट के श्री मान् दीवान बहादुर कामेष्वर नारायण सिंह से संपर्क कर क्षेत्र में षिक्षा की आलोक षिखा प्रज्वलित करने का आग्रह किया । श्रीमान् बाबू ने महाविद्यालय को 15 बीघा 4 कट्टा 16 धूर जमीन दान देकर महाविद्यालय की स्थापना का मार्ग प्रषस्त कर दिया । प्रारंभ में महाविद्यालय का नाम श्रीमान् बाबू की धर्म पत्नी के नाम पर ‘‘रानी राजीनीति कुवंर महाविद्यालय रखा गया । महाविद्यालय का विकास कार्य संतोश प्रद एवं समुचित ढंग से हो पाये, इसके पूर्व ही, श्रीमान् दीवान बहादुर कामेष्वर नारायण जी का असमय ही स्वर्गारोहन हो गया । फलतः महाविद्यालय प्रषासीका समिति ने महाविद्यालय का नाम बदल कर दीवान बहादुर कामेष्वर नारायण महाविद्यालय करने की स्वीकृति प्रदान कर दी ।
जून 1970 में महाविद्यालय का प्रथम सत्रारम्भ हुआ एवं संस्थापक सचिव एवं प्राचार्य क्रमषः बाबू राजवंषी प्रसाद सिंह एवं श्री नर्मदेष्वर मिश्र के नेतृत्व में तत्कालीन बिहार विष्वविद्यालय, मुज्जफ्फरपुर ने संतश्ट होकर कला एवं विज्ञान संकाय में इन्टरमिडियट स्तर तक की संबद्धता प्रदान कर मान्यता दे दी । प्रतिवद्ध विद्वान षिक्षकों के मेहनत से प्रथम सत्र में ही 95.3 प्रतिषत छात्रों ने उतीर्णता हासिल किया । बाद में अनेक प्राचार्य यथा डा0 जयदेव झा, प्रो0 रामचन्द्र प्रसाद सिंह, डा0 मेहष मिश्र, डा0 मदन मोहन पांडेय, डा0 भैरव मोहन प्रसाद सिंह, डाॅ0 सुरेष चन्द्र षर्मा, डा0 सतीष चन्द्र पाठक, डा0 महेन्द्र मिश्र, प्रो0 यदुनन्दन प्रसाद, एवं डा0 मेघन प्रसाद बगैरह आये ।
1.05.1981 को यह महाविद्यालय ललित नारायण मिथलिा विष्वविद्यालय, दरभंगा की एक अंगीभूत इकाई बन गई । 1983 से ही यूजीसी की संबंद्धता प्राप्त कर अनुदान प्राप्त करता आ रहा है ।